पृथ्वी पर जीवन के घटक इस जगह से आए थे! जापानी शोध में सामने आई चौंकावनी जानकारी

जापान के वैज्ञानिकों के उल्कापिंडों के विश्लेषण ने दर्शाया है कि जीवन के रासायनिक घटक (chemical components of life) पृथ्वी पर गहरे अंतरिक्ष से आए थे। इन पुरातन समय में बने उल्कापिंडों में शुरुआती जीवन के घटकों का पाया जाना इसी धारणा को पक्का करता है कि पृथ्वी पर जीवन के घटक बाहर से आए थे। शोधकर्ताओं ने तीन उल्कापिंडों के पदार्थो का परीक्षण किया। इनमें से एक 1950 में अमेरिका के पास मरे शहर के पास गिरा था।

सौरमंडल के शुरुआती समय में बने थे ये कार्बन कॉन्ड्राइट

दूसरा 1969 में ऑस्ट्रेलिया के विक्सोरिया के राज्य के मर्चीसन शहर में गिरा था और तीसरा साल 2000 में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत की झील टैगिश झील के पास गिरा था। सभी तीन उल्कापिंड कार्बनेशियस कॉन्ड्रइट्स या सी कॉन्ड्रइट्स की श्रेणी का माने गए हैं। इन सभी तीन कार्बन कॉन्ड्राइट की उत्पत्ति उन पथरीले पादर्थों से हुई थी जो सौरमंडल के शुरुआती समय में बने थे।

उल्कापिंड में 4 प्रतिशत जैविक कार्बन था

कार्बनेशियस कॉन्ड्रइट्स या सी कॉन्ड्रइट्स कार्बन समृद्ध वे उल्कापिंड हैं जहां मर्चीसन और मरे उल्कापिंड में भार के अनुसार 2 प्रतिशत जैविक कार्बन था वहीं टैगिश झीलके उल्कापिंड में 4 प्रतिशत जैविक कार्बन था। जबकि पृथ्वी की जीवों में कार्बन एक प्रमुख और मूल घटक माना जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से संबंधित रासायनिक चरणों के बारे में अभी काफी कुछ सीखने की जरूरत है।

उल्कापिंड जैविक यौगिकों के प्रमुख स्रोत

DNA और RNA में पाए जाने वाले संपूर्ण न्यूक्लियोबेसिस की पृथ्वी से बाहर के स्रोत से आने की पुष्टि उस मत को मजबूत करती है जिसके अनुसार उल्कापिंड पृथ्वी के शुरुआती जीवों की उत्पत्ति के लिए जरूरी जैविक यौगिकों के प्रमुख स्रोत हो सकते हैं। वैज्ञानिक लंबे समय से यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि पृथ्वी पर वे कौन से रहस्यमयी परिस्थितियां थी जब पृथ्वी पर रासायनिक पदार्थ गर्म पानी वाले हालात में एक ऐसे सूक्ष्मजीव के निर्माण का कारण बने थे जो खुद का प्रजनन कर सकता था। यह शोध केवल उन रासायनिक यौगिकों की सूची में कुछ नया जरूर जोड़ती है जिससे पृथ्वी पर जीवन के ठीक पहले की स्थितियों का पता चल सकेगा। ऐसे स्थितियों को प्री बायोटिक स्थितियां कहते हैं। वैज्ञानिकों के लिए इन स्थितियों के बारे में जीवाश्मों से भी मदद नहीं मिल पाती है।