फिल्म से भी ज्यादा खतरनाक है रियल KGF की कहानी, 6 हजार से ज्यादा मजदूरों की हुई थी मौत

हाल ही में सिनेमा घरों में रिलीज हुई KGF Chapter – 2 फिल्म (KGF Chapter 2) ने देश ही नहीं, दुनिया में भी अपना लोहा मनवा दिया है। अभिनेता यश की इस फिल्मने भारत में अबतक सिर्फ तीन ही दिन में 300 करोड से ज्यादा की कमाई कर डाली है। इस फिल्म की कहानी कोलार गोल्ड फील्ड्स से जुडी हुई है जिसका इतिहास 121 साल पुराना है। कोलार गोल्ड फील्ड्स (kolar gold fields story) कर्णाटक के दक्षिण-पूर्व विस्तार में है।

लोग हाथ से जमीन खोद कर सोना नीकाल लेते थे- ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने बेंगलुरू में अफना घर बनवाया था। वो किताबों और आर्टिकल पढने के शोखीन थे और उसमें ही अपना ज्यादातर समय व्यतीत करते थे। उनको भारत का इतिहास जानने में उत्सुकता थी। साल 1871 में जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था तब माइकल भी भारत में थे। उन्होंने साल 1804 में प्रकाशित एशियाटिक जर्नल का लेख पढ़ा। इस लेख में बताया गया था कि कोलार में लोग हाथ से जमीन खोदते हैं और सोना निकाल लेते हैं।

कोलार में चोल साम्राज्य का शासन था-ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने इस खान के बारे में लेख लिखा था। उन्होंने अपने इस आर्टिकल में बताया था कि साल 1799 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को मार दिया। इसके बाद उन्होंने कोलार और आसपास के इलाकों को कब्जा लिया। हालांकि कुछ सालों बाद यह जमीन मैसूर राज्य को सौंप दी गई, लेकिन सर्वे का अधिकार अंग्रेजों के पास ही रहा। इसे लेख में बताया गया था कि कभी कोलार में चोल साम्राज्य का शासन था।

सोना निकालने के लिए खतरनाक एक्सपेरिमेंट किए़- सबसे हैरान वाली बात यह है कि यहां पर लोग हाथ से खोदकर सोना निकाल लेते थे। वॉरेन ने घोषणा की कि सोना निकालने वालों को इनाम दिया जाएगा। इसके बाद जब लोगों ने सोना निकाला तो करीब 56 किलो मिट्टी में थोड़ा सा ही सोना निकला। इसके बाद तकनीक का इस्तेमाल किया गया। अंग्रेजों ने 1804 से लेकर 1860 तक सोना निकालने के लिए खतरनाक एक्सपेरिमेंट किए़, लेकिन उनके हाथ कोई कामयाबी नहीं लगी बल्कि कई मजदूरों की मौत हो गई। इसके बाद अंग्रेजों ने खुदाई पर रोक लगा दी।

भारत का पहला बिजली केंद्र बना- इसके बाद लेवेली के मन में रिसर्च करने का ख्याल आया है वह और कोलार पहुंच गए। मैसूर के महाराजा ने साल 1873 में लेवेली को कोलार में खुदाई की इजाजत दी। 1875 में फिर से खुदाई शुरू की गई। रोशनी के लिए यहां पर बिजली का इंतजाम किया गया। कोलार भारत का पहला शहर है जहां पर सबसे पहले बिजली पहुंची थी। कोलार गोल्ड फील्ड्स में लाइट की कमी को पूरा करने के लिए कोलार से 130 किलोमीटर की दूरी पर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया। ये पावर प्लांट एशिया का दूसरा और भारत का पहला बिजली केंद्र था। लेवेली की कोशिशों के बाद 1902 में केजीएफ में 95 प्रतिशत सोना निकाले जाने लगा।

KGF को छोटा इंग्लैंड कहा जाता था- साल 1930 तक इस खान में 30 हजार मजूदर खुदाई करने लगे थे। कोलार फील्ड्स बाद में अंग्रेजों की सबसे पसंदीदा जगह बन गई। ब्रिटिश अधिकारियों और इंजीनियर्स ने यहां पर अपना-अपना घर बनाना शुरू कर दिया। ठंडा होने की वजह से यह एक वैकेशन स्पॉट की तरह था। एक समय KGF को छोटा इंग्लैंड कहा जाता था। आजादी के बाद KGF की खादानों पर भारत सरकार का कब्जा हो गया है। साल 1956 में इस सोने की खान का राष्ट्रीयकरण हो गया।

2001 में यहां पर खुदाई बंद कर दी गई- भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने साल 1970 में यहां पर सोना निकालने का काम शुरू किया। इस खदानों से सरकार को शुरुआत में तो फायदा हुआ, लेकिन 1980 का दौर आने तक कंपनी घाटे में पहुंच गई। कंपनी के पास मजदूरों को देने के लिए आमदनी नहीं बची। साल 2001 में यहां पर खुदाई बंद कर दी गई। इसके बाद से कोलार गोल्ड फील्ड्स खंडहर में तब्दील हो गए। दावा किया जाता है कि KGF में अभी भी सोना है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, KGF से 900 टन सोना निकाला जा चुका है।

6,000 लोगों की मौत- कोलार बेंगलुरु से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है। कोलार गोल्ड फील्ड दुनिया की दूसरी सबसे गहरी सोने की खदान है, पहले नंबर पर दक्षिण अफ्रीका की पोनेंग गोल्ड माइंस है। जो दक्षिण अफ्रीका में जोहान्सबर्ग के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। 1902 में KGF भारत का 95 प्रतिशत सोना निकालता था, 1905 में गोल्ड प्रोड्यूस करने में दुनिया में भारत छठे स्थान पर था। तब माइंस में लिफ्ट नहीं थी। माइंस में जाने के लिए शार्प हुआ करते थे, जिसमें लकड़ी की बीम से सपोर्ट किया जाता था। इसके बावजूद यहां पर कभी-कभी हादसा हो जाता है। माना जाता है 120 साल के ऑपरेशन में 6,000 लोगों की मौत हो गई।