करंज को हिन्दी तथा संस्कृत में कई नामों से जाना ज है, जैसे-कजं, कजारिका, अङ्गारवलि, वाद्याफल, पूतिकरंज, वारुणी, मदहस्तिना इत्यादि। करंज छः या सात किस्मों का होता है-महाकरज, धृत करंज, गुच्छ करंज, पूति करंज, वाद्याकरंज इत्यादि।
करंज के वृक्ष प्रायः वनों व पर्वतों में होते हैं, उ भारतवर्ष में लगभग सभी जगह पाये जाते हैं। इसका वृक्ष 60-70 फीट तक ऊंची होता है। इसके तने को गोलाई पांच से आठ फुट तक होती है। इसके पत्ते सुन्दर चमकदार व हरे रंग के होते हैं।
इसके फूल सफ़ेद और नीले से बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी फली का रंग भी आसमानी होता है। यह कांटेदार फली मोटी, सख्त, लगभग दो इंच तक लम्बी और एक इंच चौड़ी होती है। इस फली के अन्दर फल गुच्छेदार झुमकों में लगे रहते हैं।
इसमें एक प्रकार का गोंद भी निकलता है। इसके बीजों से एक प्रकार का लाल, भूरा व गाढ़े रंग का तेल निकलता है। करंज की जड़ व छाल कड़वी, कसैली तथा स्वभाव से गरम होती है। यह व्यवहार में मूत्ररोग, वात, पित्त, कफ, फोड़े-फुंसियों, खुजली, नेत्र और योनि रोगों में लाभदायक है।
इसके पत्ते व फूल पेशाब की बीमारियों को दूर करते हैं। इसके बीजों का तेल चर्मरोगों में लाभदायक है। यह खाज, विसर्पिका और इसी प्रकार के चर्मरोगों में लाभदायक है। नीला थोथा एक रत्ती, करंज के बीज का एक मगज-इन दोनों को पीसकर सरसों के बराबर 10-12 गोली बना लेनी चाहिए।
इन गोलियों में से एक और दो गोली देने से पसली का दर्द दूर होता है। यूनानी हकीम करंज की जड़ को स्तम्भत के लिए एक उत्तम सहवास शक्ति की औषधि मानते हैं। उनका कहना है कि करंज की जड़ को दांत के नीचे दबाकर स्त्री के साथ सहवास करने से वीर्य स्खलित नहीं होता है।
इतनी स्तम्भन शक्ति पैदा होती है, जिसकी हद नहीं। महर्षि चरक के मतानुसार पानी के साथ इसके फल की लुगदी बनाकर कुष्ठ और विसर्पिका रोगों में देते हैं। सुश्रुत के मतानुसार इसका तेल व्रणदार कुष्ठ में उपयोगी है।
करंज के बीजों के चूर्ण को पलाश के फूलों की 21 भावना देकर उसे सुखा लें और उसकी सलाइयां बना लें। इन सलाइयों को पानी में घिसकर आंख में आंजने से आंखों की फूली कट जाती है। चोट पर करंज तेल का प्रयोग करने से घाव में पड़ने वाला मवाद कम होता है।
साथ ही घाव को इन्फेक्शन से भी बचाया जा सकता है। इसके अलावा करंज के कटु एवं तिक्त रस के गुण भी चोट और उसके घाव को जल्दी ठीक करने में सहायता करते हैं। करंज तेल से मालिश करने से त्वचा की खुजली एवं सोरायसिस आदि त्वचा विकारों में लाभ होता है।करंज तेल में नींबू रस की एक से दो बूंद मिलाकर घाव पर लगाने से उपदंश में लाभ होता है।
करंज के बीजों से बना तेल कृमिनाशक होता है। इसलिए इस तेल का इस्तेमाल कुष्ठ रोग में लाभदायक होता है। दरअसल करंज तेल में जीवाणुनाशक गुण होता है, जो इसे कुष्ठ जैसे रोगों के लिए कारगर बनाता है।
इसके अलावा करंज पौधे की छाल को घिसकर बना लेप भी कुष्ठ रोग और घाव आदि पर फायदा करता है। शरीर पर करंज का तेल लगाने से मच्छरों के प्रकोप से बचा जा सकता है। इसके लिए संपूर्ण शरीर पर करंज तेल को लगाना आवश्यक है।