बिना दवा के अस्थमा, सर्दी, खांसी, गले में खराश और कफ के लिए यह हे 100% कारगर घरेलू उपाय

कपूर काचरी को गन्ध पलाशी, अम्लहरिद्र तथा गन्धमूलिका भी कहते हैं। यह हिमालय की निचली पहाड़ियों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तरांचल, नेपाल, भूटान व आसाम तक पायी जाती है। यह एक प्रकार की बेल होती है।

इसके पत्ते लम्बे, बरछी के आकार के और जड़ सुगन्धयुक्त होती है। इसका फल गोल होता है। इसकी जड़ नरकचूर से बड़ी और मोटी होती है। कपूर काचरी कड़वी, कसैली, चरपरी, तीक्ष्ण और खुश्क है। स्वभाव से गरम, दाहजनक, शीतवीर्य, हल्की, कुछ-कुछ पित्तकारक, दिल, दिमाग और मेदे को कूबत देती है।

सुद्दा खोलती है, शक्तिदायक है, पुरुषार्थ को बढ़ाने वाली तथा मूत्रेन्दिय में उत्तेजना पैदा करती है।
इसकी जड़ को पानी में बारीक पीसकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर एक या दो गोली खिलाने से वमन व जी का मिचलाना तुरन्त बन्द हो जाता है। मन्दाग्नि व सर्पदंश में यह उपयोगी होती है।

इसके पत्तों को पीसकर सांप के कटे हुए स्थान पर लगने से जहर कम हो जाता है। इसके पंचांग को कूट छानकर मटर के दाने के समान गोली बनाकर सुबह-शाम एक गोली खाने से पेट का आफरा दूर हो जाता है, ऋतुस्राव नियमित व दर्दनिवारक हो जाता है तथा पुरुषार्थ की बढ़ोत्तरी हो जाती है।

यह वनस्पति अग्निवर्द्धक, उदर को शान्ति देने वाली, पौष्टिक और उत्तेजक है। कपूर कचरी, काकड़ासिंगी, पीपली, भारंगी, नागरमोथा और धमासा के चूर्ण को गुड़ और तैल में मिलाकर सेवन करने से वातिक कास का शमन होता हे तो खांसी ठीक हो जाती हे

कपूर कचरी, पीपलामृल, जीवन्ती, दालचीनी, मोथा, पुष्करमूल, तुलसी, भुई आमलकी, इलायची, पिप्पली, सोंठ और सुगन्धबाला का सम भाग चूर्ण बनाकर उसमें आठ गुनी शक्कर मिलाकर 4-5 ग्राम चूर्ण उष्णजल से सेवन करने से स्वास रोग मे फायदे होते हे

कपूर कचरी, पोखरमूल, हींग, अम्लबेंत, चित्रक, यवक्षार, धनियाँ. अजवायन, विडंग, बालबच , सेंधानमक. चव्य, पीपलामूल, अनार, जीरा और अजमोद का चूर्ण गुल्म, प्लीहा, पार्श्वशूल आदि में लाभप्रद है इससे वायु गोले मे राहत होती हे

कपूर कचरी को गुलाबजल में पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बनाकर दो-दो गोली थोड़ी-थोड़ी देर में देने से उलटी मे राहत होती हे कपूर कचरी, मुलेटी, आँवला, धनियाँ और मधर क्षार समान मात्रा में लेकर तीन-चार ग्राम चूर्ण दिन में दो तीन बार ठन्डे पानी से देने से अम्लपित्त में लाभ होता है। 3 ग्राम चूर्ण में समभाग शक्कर मिलाकर छाछ के साथ देने से दस्त में लाभ होता है।

कपूर कचरी , भुई आमला, त्रिकटु समभाग लेकर चूर्ण बनाकर दो ग्राम चूर्ण के साथ 6 ग्राम गुड़ तथा 6 ग्राम घृत मिलाकर सेवन करने से प्रतिश्याय, पार्श्वपीड़ा , हृदयशूल और बस्तिशूल का नाश होता है। ओर सर्दि-जुखाम मे लाभ होता हे

शिरोरोगों में कपूर कचरी के चूर्ण को तैल में मिला कर उसका नस्य लिया जाता है। सिर पर लगाने के लिये प्रयुक्त तेल योगों में सुगन्धि के लिये भी कपूर कचरी डाली जाती हे घर की दुर्गन्ध तथा ग्रहबाधा निवारणार्थ कपूर कचरी के चूर्ण को धूप की तरह जलाते हैं।

कपूर कचरी के चूर्ण से मंजन करने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है तथा दन्तशूल दूर होता है। कपूर कचरी के चूर्ण को तैल में मिलाकर लगाने से उड़े हुये बाल पुनः आने लगते हैं।