1. शैलपुत्री
शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है।
2. ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी। देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बाएं हाथ में कमण्डल होता है। इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा। शास्त्रों में मां के एक हर स्वरूप की कथा का महत्व बताया गया है। मां ब्रह्मचारिणी की कथा जीवन के कठिन क्षणों में भक्तों को सहारा देती है।
3. चंद्रघंटा
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं। माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है।
इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं। इनकी आराधना सद्यः फलदायी है। माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है। इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि निनादित हो उठती है।
4. कुष्मांडा
माँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। ” कु” मतलब थोड़ा “शं ” मतलब गरम “अंडा ” मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा । वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है। उनके पास आठ हाथ है ,साथ प्रकार के हतियार उनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में माला होती है और वह शेर की सवारी करती है।
5. स्कन्दमाता
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है।
इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है।
6. कात्यायनी
नवरात्र के छठे दिन दुर्गाजी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा और अर्चना की जाती है। ऐसा विश्वास है कि इनकी उपासना करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि इन्होंने कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया, इसीलिये इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इनका रंग स्वर्ण की भांति अन्यन्त चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं ओर के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में खड्ग अर्थात् तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है। इनका वाहन भी सिंह है।
7. कालरात्रि
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। मां कालरात्रि के पूरे शरीर का रंग एक अंधकार की तरह है, इसलिये शरीर काला रहता है। इनके सिर के बाल हमेशा खुले रहते हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं।
मां की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है। अत: इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
8. महागौरी
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
9. सिद्धिदात्री
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।




