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यह है महाभारत के प्रमुख पात्र, जानिए इनके बारे में

<h3><strong>कृष्ण<&sol;strong><&sol;h3>&NewLine;<p>वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान और भगवान विष्णु के 8वें अवतार जिन्होंने अपने दुष्ट मामा कंस का वध किया था। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध के प्रारंभ में गीता उपदेश दिया था। कृष्ण की 8 पत्नियां थीं&comma; यथा रुक्मणि&comma; जाम्बवंती&comma; सत्यभामा&comma; कालिंदी&comma; मित्रबिंदा&comma; सत्या&comma; भद्रा और लक्ष्मणा। श्रीकृष्ण के लगभग 80 पुत्र थे। उनमें से खास के नाम हैं- प्रद्युम्न&comma; साम्ब&comma; भानु&comma; सुबाहू आदि। साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था। साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया था।<&sol;p>&NewLine;<h3><strong>भीष्म<&sol;strong><&sol;h3>&NewLine;<p>कृष्ण के बाद भीष्म का नंबर आता है&comma; जो महाभारत के प्रमुख किरदारों में से एक थे। द्यु नामक वसु ने ही भीष्म के रूप में जन्म लिया था। वशिष्ठ ऋषि के शाप व इंद्र की आज्ञा से आठों वसुओं को शांतनु-गंगा से उत्पन्न होना पड़ा। 7 को तो गंगा ने नदी में बहा दिया जबकि 8वें वसु &OpenCurlyQuote;द्यु’ जिंदा रह गए वही भीष्म थे जिनका प्रारंभिक नाम &OpenCurlyQuote;देवव्रत’ था।<&sol;p>&NewLine;<h3><strong>गुरु द्रोणाचार्य<&sol;strong><&sol;h3>&NewLine;<p>कौरवों व पांडवों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा गुरु द्रोणाचार्य ने ही दी थी। द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। महाभारत के अनुसार एक बार महर्षि भरद्वाज जब सुबह गंगा स्नान करने गए&comma; वहां उन्होंने घृताची नामक अप्सरा को जल से निकलते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। यह देखकर उन्होंने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में संग्रहित कर लिया। उसी में से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था। जब द्रोणाचार्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे&comma; तब उन्हें पता चला कि भगवान परशुराम ब्राह्मणों को अपना सर्वस्व दान कर रहे हैं। द्रोणाचार्य भी उनके पास गए और अपना परिचय दिया। द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से उनके सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र मांग लिए और उनके प्रयोग की विधि भी सीख ली। द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था।<&sol;p>&NewLine;<h3><strong>कर्ण<&sol;strong><&sol;h3>&NewLine;<p>जब पांडवों की माता कुंती बाल्यावस्था में थी&comma; उस समय उन्होंने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र दिया जिससे वह किसी भी देवता का आह्वान कर उससे पुत्र प्राप्त कर सकती थीं। विवाह से पूर्व इस मंत्र की शक्ति देखने के लिए एक दिन कुंती ने सूर्यदेव का आह्वान किया&comma; जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ। किंतु लोक-लाज के भय से कुंती ने कर्ण को नदी में बहा दिया। कर्ण दिव्य कवच-कुंडल के साथ ही पैदा हुआ था। कर्ण का पालन-पोषण धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ व उसकी पत्नी राधा ने किया। राधा का पुत्र समझे जाने के कारण ही कर्ण राधेय नाम से भी जाना जाने लगा। युद्ध के दौरान कर्ण ने कौरवों का साथ दिया। श्राप के कारण कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया और उसे अपने दिव्यास्त्रों का ज्ञान भी नहीं रहा। इसी समय अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया।<&sol;p>&NewLine;<h3><strong>द्रौपदी<&sol;strong><&sol;h3>&NewLine;<p>सत्यवती&comma; गांधारी और कुंती के बाद यदि किसी का नंबर आता है तो वह थीं 5 पांडवों की पत्नी द्रौपदी। द्रौपदी के लिए पांचों पांडवों के साथ विवाह करना बहुत कठिन निर्णय था। सामाजिक परंपरा के विरुद्ध उसने यह किया और दुनिया के समक्ष एक नया उदाहरण ही नहीं रखा बल्कि उसने अपना सम्मान भी प्राप्त किया और खुद की छवि को पवित्र भी बनाए रखा। द्रौपदी की कथा और व्यथा पर कई उपन्यास लिखे जा चुके हैं।<&sol;p>&NewLine;<p>द्रौपदी को इस महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। द्रौपदी ने ही दुर्योधन को इंद्रप्रस्थ में कहा था&comma; &&num;8216&semi;अंधे का पुत्र भी अंधा।&&num;8217&semi; बस यही बात दुर्योधन के दिल में तीर की तरह धंस गई थी। यही कारण था कि द्यूतक्रीड़ा में उनसे शकुनि के साथ मिलकर पांडवों को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए राजी कर लिया था। द्यूतक्रीड़ा या जुए के इस खेल ने ही महाभारत के युद्ध की भूमिका लिख दी थी&comma; जहां द्रौपदी का चीरहरण हुआ था।<&sol;p>&NewLine;

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