Article

जानिए महारथी कर्णने अपने कवच और कुंडल किसको दान में दिए थे

<p>कर्ण &colon; कर्ण से यदि कवच-कुंडल नहीं हथियाए होते&comma; यदि कर्ण इंद्र द्वारा दिए गए अपने अमोघ अस्त्र का प्रयोग घटोत्कच पर न करते हुए अर्जुन पर करता तो आज भारत का इतिहास और धर्म कुछ और होता।<&sol;p>&NewLine;<p>भगवान कृष्ण यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल है&comma; तब तक उसे कोई नहीं मार सकता। ऐसे में अर्जुन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। उधर देवराज इन्द्र भी चिंतित थे&comma; क्योंकि अर्जुन उनका पुत्र था। भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदायशी कवच और कुंडल हैं&comma; वह युद्ध में अजेय रहेगा।<&sol;p>&NewLine;<p>तब कृष्ण ने देवराज इन्द्र को एक उपाय बताया और फिर देवराज इन्द्र एक ब्राह्मण के वेश में पहुंच गए कर्ण के द्वार। देवराज भी सभी के साथ लाइन में खड़े हो गए। कर्ण सभी को कुछ न कुछ दान देते जा रहे थे। बाद में जब देवराज का नंबर आया तो दानी कर्ण ने पूछा- विप्रवर&comma; आज्ञा कीजिए&excl; किस वस्तु की अभिलाषा लेकर आए हैं&quest;<&sol;p>&NewLine;<p>विप्र बने इन्द्र ने कहा&comma; हे महाराज&excl; मैं बहुत दूर से आपकी प्रसिद्धि सुनकर आया हूं। कहते हैं कि आप जैसा दानी तो इस धरा पर दूसरा कोई नहीं है। तो मुझे आशा ही नहीं विश्‍वास है कि मेरी इच्छित वस्तु तो मुझे अवश्य आप देंगे ही।‍ फिर भी मन में कोई शंका न रहे इसलिए आप संकल्प कर लें तब ही मैं आपसे मांगूंगा अन्यथा आप कहें तो में खाली हाथ चला जाता हूं&quest;<&sol;p>&NewLine;<p>तब ब्राह्मण के भेष में इन्द्र ने और भी विनम्रतापूर्वक कहा- नहीं-नहीं राजन&excl; आपके प्राण की कामना हम नहीं करते। बस हमें इच्छित वस्तु मिल जाए&comma; तो हमें आत्मशांति मिले। पहले आप प्रण कर लें तो ही मैं आपसे दान मांगूं&quest;<&sol;p>&NewLine;<p>कर्ण ने तैश में आकर जल हाथ में लेकर कहा- हम प्रण करते हैं विप्रवर&excl; अब तुरंत मांगिए। तब क्षद्म इन्द्र ने कहा- राजन&excl; आपके शरीर के कवच और कुंडल हमें दानस्वरूप चाहिए। एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। कर्ण ने इन्द्र की आंखों में झांका और फिर दानवीर कर्ण ने बिना एक क्षण भी गंवाए अपने कवच और कुंडल अपने शरीर से खंजर की सहायता से अलग किए और ब्राह्मण को सौंप दिए।<&sol;p>&NewLine;<p>इन्द्र ने तुंरत वहां से दौड़ ही लगा दी और दूर खड़े रथ पर सवार होकर भाग गए। इसलिए क‍ि कहीं उनका राज ‍खुलने के बाद कर्ण बदल न जाए। कुछ मील जाकर इन्द्र का रथ नीचे उतरकर भूमि में धंस गया। तभी आकाशवाणी हुई&comma; देवराज इन्द्र&comma; तुमने बड़ा पाप किया है। अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए तूने छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी है। अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और तू भी यहीं धंस जाएगा।<&sol;p>&NewLine;<p>तब इन्द्र ने आकाशवाणी से पूछा&comma; इससे बचने का उपाय क्या है&quest; तब आकाशवाणी ने कहा&comma; अब तुम्हें दान दी गई वस्तु के बदले में बराबरी की कोई वस्तु देना होगी। इन्द्र क्या करते&comma; उन्होंने यह मंजूर कर लिया। तब वे फिर से कर्ण के पास गए। लेकिन इस बार ब्राह्मण के वेश में नहीं। कर्ण ने उन्हें आता देखकर कहा- देवराज आदेश करिए और क्या चाहिए&quest;<&sol;p>&NewLine;<p>इन्द्र ने झेंपते हुए कहा&comma; हे दानवीर कर्ण अब मैं याचक नहीं हूं बल्कि आपको कुछ देना चाहता हूं। कवच-कुंडल को छोड़कर मांग लीजिए&comma; आपको जो कुछ भी मांगना हो। कर्ण ने कहा- देवराज&comma; मैंने आज तक कभी किसी से कुछ नही मांगा और न ही मुझे कुछ चाहिए। कर्ण सिर्फ दान देना जानता है&comma; लेना नहीं।<&sol;p>&NewLine;<p>तब इन्द्र ने विनम्रतापूर्वक कहा- महाराज कर्ण&comma; आपको कुछ तो मांगना ही पड़ेगा अन्यथा मेरा रथ और मैं यहां से नहीं जा सकता हूं। आप कुछ मांगेंगे तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी। आप जो भी मांगेंगे&comma; मैं देने को तैयार हूं। कर्ण ने कहा- देवराज&comma; आप कितना ही प्रयत्न कीजिए लेकिन मैं सिर्फ दान देना जानता हूं&comma; लेना नहीं। मैंने जीवन में कभी कोई दान नहीं लिया।<&sol;p>&NewLine;<p>तब लाचार इन्द्र ने कहा- मैं यह वज्ररूपी शक्ति आपको बदले में देकर जा रहा हूं। तुम इसको जिसके ऊपर भी चला दोगे&comma; वो बच नहीं पाएगा। भले ही साक्षात काल के ऊपर ही चला देना&comma; लेकिन इसका प्रयोग सिर्फ एक बार ही कर पाओगे।<&sol;p>&NewLine;<p>कर्ण कुछ कहते उसके पहले ही देवराज वह वज्र शक्ति वहां रखकर तुरंत भाग लिए। कर्ण के आवाज देने पर भी वे रुके नहीं। बाद में कर्ण को उस वज्र शक्ति को अपने पास मजबूरन रखना पड़ा। लेकिन जैसे ही दुर्योधन को मालूम पड़ा कि कर्ण ने अपने कवच-कुंडल दान में दे दिए हैं&comma; तो दुर्योधन को तो चक्कर ही आ गए। उसको हस्तिनापुर का राज्य हाथ से जाता लगने लगा। लेकिन जब उसने सुना कि उसके बदले वज्र शक्ति मिल गई है तो फिर से उसकी जान में जान आई।<&sol;p>&NewLine;<p>अब इसे भी कर्ण की गलती नहीं मान सकते। यह उसकी मजबूरी थी। लेकिन उसने यहां गलती यह की कि वह इन्द्र से कुछ मांग ही लेता। नहीं मांगने की गलती तो गलती ही है। अरे&comma; वज्र शक्ति को तीन बार प्रयोग करने की इच्छा ही व्यक्त कर देता।<&sol;p>&NewLine;

Hindustan Coverage

Recent Posts

क्या 5 साल से कम उम्र के बच्चों का भी लगेगा ट्रेन टिकट ? जानिए क्या है हकीकत

भारतीय रेलवे की मदद से रोजाना लाखों लोग एक जगह से दूसरी जगह की यात्रा…

2 years ago

जानिए कौन हैं भगवान शिव की पुत्री अशोक सुंदरी ? कैसे हुआ था अशोक सुंदरी का जन्म ?

सावन महीने की शुरूआत हो चुकी है । इस महीने में भगवान शिव की विशेष…

2 years ago

फिर से बदली जा सकती है स्मार्टफोन की बैटरी! जानें इसके फायदे और नुकसान

एक समय था कि जब हम स्मार्टफोन में बैटरी बदल सकते थे। लेकिन स्मार्टफोन ब्रांड…

2 years ago

चंद्रयान-3 आज होगा लॉन्च, जानिए कैसे देख सकते हैं चंद्रयान की उड़ान

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO आज चंद्रयान-3 मिशन को आज यानी 14 जुलाई को लॉन्च करने…

2 years ago

सावन का पहला सोमवार आज, जाने पूजन की विधि और महत्व

सावन मास को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र महीना माना गया है, और भगवान शिव…

2 years ago

इस शहर मे टमाटर बिक रहे है मात्र 35 रुपये प्रति किलो! जाने क्या है कारण

भारत मे इन दिनों टमाटर के दाम आसमान छु रहे है। लोग टमाटर के दामों…

2 years ago